-->

Ad Unit (Iklan) BIG

संस्कृति जहां सांस लेती है

Jansatta
 
thumbnail संस्कृति जहां सांस लेती है
Feb 27th 2022, 19:16, by Bishwa Jha

अजीत दुबे

यह आजादी का अमृत वर्ष है। इसमें भारतीय भाषाओं के संवर्धन-संरक्षण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, पर भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली भाषा भोजपुरी के साथ झारखंड सरकार द्वारा अन्याय भी किया जा रहा है। झारखंड में पहले भोजपुरी को द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा दिया गया था। पर, अब दो भाषाओं- भोजपुरी और मगही- को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से बाहर कर दिया गया है। ऐसा सियासी हित साधने के लिए किया गया है। नतीजतन, भाषायी अस्मिता को लेकर संघर्ष बढ़ सकता है। झारखंड के बोकारो और धनबाद में हाल में ही हुआ संघर्ष इसका उदाहरण है।

केन्याई लेखक न्गूगी वा थ्योंगो हमारे समय के बेहद महत्त्वपूर्ण विचारक हैं। मातृभाषा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए वे कहते हैं, 'जब मैं उनकी भाषा में लिखता था, तो उन सबका प्रिय लेखक था। लेकिन, जैसे ही मैंने अपनी मातृभाषा में लिखा, मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। तब मेरी समझ में आया कि आजादी तक सिर्फ मातृभाषा के जरिए ही पहुंचा जा सकता है।' महात्मा गांधी ने कहा था, 'राष्ट्र के जो बालक अपनी मातृभाषा में नहीं, बल्कि किसी अन्य भाषा में शिक्षा पाते हैं, वे आत्महत्या करते हैं।

इससे उनका जन्मसिद्ध अधिकार छिन जाता है।' बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनेस्को का मानना है कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का आधार उनकी मातृभाषा होना चाहिए, तभी प्रारंभिक और आधारभूत शिक्षा कारगर और प्रभावशाली हो सकती है। कई अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि बच्चों में सीखने की ललक बढ़ती है। लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी भोजपुरीभाषी अपनी मातृभाषा में शिक्षा पाने के अधिकार से इसलिए वंचित हैं, क्योंकि उनकी मातृभाषा को अब तक संवैधानिक मान्यता नहीं मिली है।

एक हजार साल से पुरानी भोजपुरी वर्तमान दौर में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली भाषा है। बावजूद इसके यह अपने मूल परिवेश में ही सरकारी उपेक्षा की शिकार है। बिहार सरकार द्वारा भोजपुरी को संवैधानिक हक देने के लिए भेजे गए प्रस्ताव पर केंद्र सरकार द्वारा किसी भी तरह के पहल की कोई सूचना नहीं है। मारीशस सरकार ने 2011 में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दी और अभी वहां के सभी ढाई सौ सरकारी हाई स्कूलों में भोजपुरी के पठन-पाठन की व्यवस्था की है। कहना न होगा कि मारीशस सरकार की पहल पर ही भोजपुरी 'गीत-गवनई' को विश्व सांस्कृतिक विरासत का दर्जा यूनेस्को द्वारा दिया गया है। मारीशस सरकार के इस प्रस्ताव को विश्व के तकरीबन एक सौ साठ देशों ने अनुमोदित किया है।

भोजपुरी को मारीशस के अलावा नेपाल में भी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। मगर भारत सरकार भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता ही नहीं दे रही। भाषायी साम्राज्यवाद के इस दौर में जहां हम आज अपनी संस्कृति को धीरे-धीरे खो रहे हैं वैसे ही मातृभाषा को भी खो रहे हैं। यूनेस्को द्वारा संकटग्रस्त भाषाओं पर 2010 में जारी की गई 'इंटरेक्टिव एटलस रिपोर्ट' बताती है कि अपनी भाषाओं को भूलने में भारत शीर्ष पर है। दूसरे स्थान पर अमेरिका और तीसरे पर इंडोनेशिया है। यह रिपोर्ट में जिक्र है विश्व की कुल छह हजार भाषाओं में से ढाई हजार पर आज विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। एक सौ निन्यानबे भाषाएं और बोलियां ऐसी हैं, जिन्हें अब महज दस लोग और एक सौ अठहत्तर को दस से पचास लोग ही समझते-बोलते हैं।

यहां चिंता का विषय यह भी है कि ऐसे क्या कारण और परिस्थितियां रहीं की 'बो' और 'खोरा' भाषाओं की जानकार दो महिलाएं ही बची रह पार्इं? वे अपनी पीढ़ियों को उत्तराधिकार में अपनी मातृभाषाएं क्यों नहीं दे पार्इं? दरअसल, मातृभाषाएं संस्कृति का अहम हिस्सा हैं, जिन्हें बचाना हमारे लिए आवश्यक है। अगर कोई भाषा खत्म होती है तो उसके साथ पूरी संस्कृति खत्म हो जाएगी।

रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था- प्रत्येक के लिए अपनी मातृभाषा और सबके लिए हिंदी। लेकिन यह अब तक हो नहीं सका है। अंग्रेजी का दबदबा अब तक कायम है और अंग्रेजी की भाषायी उपनिवेश को कहीं से कोई चुनौती नहीं मिल पा रही है। तथ्य यह है कि बीते चार-पांच दशक में एक बड़ी आबादी की मातृभाषा गुम हो चुकी है। इस दौरान देश की पांच सौ भाषाओं-बोलियों में से लगभग तीन सौ पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं और एक सौ नब्बे से ज्यादा आखिरी सांसें ले रही हैं। पिछली जनगणना के अनुसार देश के सवा अरब लोग साढ़ो सोलह सौ मातृभाषाओं में बात करते हैं।

कहना न होगा कि किसी भी राष्ट्र की तरक्की और उसके विकास में सबसे बड़ा योगदान होता है- संकल्प शक्ति का और संकल्प शक्ति मातृभाषा से ही आ सकती है विदेशी भाषाओं में संकल्प नहीं लिए जाते और विदेशी भाषाओं के संकल्प कभी पूरे नहीं हो पाते। भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उसकी अस्मिता, पहचान और सुविधाओं की मांग है।

The post संस्कृति जहां सांस लेती है appeared first on Jansatta.

You are receiving this email because you subscribed to this feed at blogtrottr.com.

If you no longer wish to receive these emails, you can unsubscribe from this feed, or manage all your subscriptions.

Related Posts

There is no other posts in this category.
Subscribe Our Newsletter